नर तन फिर न मिलेगा छोड़ दे गठारिय वन्दे पाप की।
Category: निर्गुण भजन nirgun Bhajan
हंस्लो मित्र कोनी थारो ए भोली काया,
चेत चेत म्हारा मन रे दीवाना, पीछे फेरा क्यों नहीं देता
हरी ने हिये न धारा रे ,
थारी मोह माया ने छोड़ ,
राम ने भज रे ।
भटकता डोले काहे प्राणी, चला आ प्रभु की तू शरण में, बदल जाएगी जिंदगानी।
अब मन भज ले राधेश्याम,बुढ़ापा बैरी आवेगाे।
जिंदगी है मौज में, मौज में जी मौज में,
राम का नाम कलयुग में अनमोल है। मुरख नर भूल जाए तो में क्या करूं।
उमरिया बिताए देयी,राम नहीं जाना।
You must be logged in to post a comment.