काया नगर रे बीच में रे,
लहरिया लम्बा पेड़ खजूर
Tag: Aanand chayo janak nagariya kaise sapari
जब जाना जनकपुर राम हमारी गली होकर के जाना।
जानकी प्यारी के, जनक दुलारी के, मन में बसे हैं श्री राम
हमको भी एक बार घुमाई दे कोई अवध नगरिया।
जनक दुलारी की होती बिदाई ।
रोये नगरिया हो
छिपते छिपाते आ गई रे कान्हा तेरी नगरिया।
अरे ओरे छोरा नंद जी का
फागुन में फाग खिला जा रे ।
श्याम से मिलकर आयेंगे,चलो खाटू नगरिया
ओ जी ओ गिरधारी नटवर नागरिया,
आज तुलसा जी की नगरिया,हरी दूल्हा बने आ रहे हैं।
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