अवध सैंया मेरी छोड़ो न बैंया। सिया के सैंया मेरी छोड़ो न बैंया।
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हमको भी एक बार घुमाई दे कोई अवध नगरिया।
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
सांवली सुरतिया है,
मुख पे उजाला।।
सिर पे मोर मुकुट है साजे,
और घुंघराले बाल,
श्री गोवर्धन वासी सांवरे लाल
खुल गए भाग हमारे,गुरुदेव पधारे
छोड़ कर संसार जब तू जाएगा
माँ कौशल्या तुझको पुकारे,चले आओ अब राम हमारे
तुलसा मगन भई राम गुण गाए के।
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