ओ कान्हा ओ कान्हा सुन लो विनती मेरी।
Tag: ek akela kanha
कान्हा यो के आई थारा मन में,
गुजरया नचाई वृंदावन में।
मत ना जावो छोड़ काना,
याद घणैरी आवसी,
ये कुञ्ज गली सँकरी सँकरी,
छुप गया कान्हाँ पकड़ी पकड़ी,
कन्हैया तेरी मेहरबानी रहे,
जब तलक ये मेरी जिंदगानी रहे,
कान्हा न चाहिए बैकुंठ जन्म मोहे ब्रज में दियो रे
छिपते छिपाते आ गई रे कान्हा तेरी नगरिया।
दोय दोय गुजारियां के बीच में, अकेलो कानुडो।
सांची बता दे नंदलाला, रूप तेरा क्यों काला।
सावन का महीना घटाएं घनघोर
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