ओ झुँझन वाली माँ,
क्या खेल रचाया है,
Tag: Racha hai srishti ko jis prabhu ne
ऐसी रचना रच गया तू जहां देखूं वहां तू ही तू।
आ जाओ अब तो गिरधारी,
रास रचाने कुंजन में,
प्रभु राम का बनके दीवाना,
छमाछम नाचे वीर हनुमाना,
शिव भोले नाथ प्रभु कैलाश पर तप करते।
आएंगे प्रभु आएंगे। राम मेरे घर आएंगे,
उमर सारी बीत गयी माला न फेरी।
मैंने मानुस जनम तुमको हीरा दिया,
तूने यूँ ही गवांया तो मैं क्या करूं।
हंसा निकल गयो पिंजरे से,खाली पड़ी रही तस्वीर। जब यमदूत लेन को आये,नैक धरे न धीर,मार मार के जान निकले,बहे नैन से नीर।हंसा निकल गयो पिंजरे से,खाली पड़ी रही तस्वीर। हंसा निकल गयो पिंजरे से,खाली पड़ी रही तस्वीर। कोई रोवे कोई मल-मल धोवे,कोई उढावे चीर। चार जने जब मिलकर ले गये,ले गये मरघट तीर। हंसा […]
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,वही ये सृष्टि चला रहे है।