गौरी के पुत्र गणेश,गणेश हम तुमको शीश नवाते हैं।
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काया नगर रे बीच में रे,
लहरिया लम्बा पेड़ खजूर
चामड़े री पुतली भजन कर ले,
काया ने सिंगार कोयलिया,
पर मंडली मत जइजो रे।
मैया ये जीवन हमारा, आप के चरणों में है,
जहां बिराजे शीश का दानी,मेरा लखदातार।चलो रे खाटू के दरबार।
चरणों का पुजारी हूँ
तेरे दर का भिखारी हूँ
मैं शरण तेरी जो आया, चरणों में शीश झुकाया,