द्वापर में कृष्ण कन्हैया ने,
क्या अद्भुद खेल रचाया था,
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हमारी गली कान्हा होके जाना। हमारी सुधि कान्हा लेते जाना।
बृज रज में लौट लगाय लीज्यो,
तू जब वृन्दावन आए,
कन्हैया बागों में मत जाइयो बाग की मालन मोह लेगी।
चोरी माखन की दे छोड़ कन्हीया मैं समझाऊँ तोय,
मेरे उठे जिगर मे पीर कन्हैया तेरी याद में,
कानूड़ा का दिल लूट ले गई गुजरी।
कन्हैया तेरी मेहरबानी रहे,
जब तलक ये मेरी जिंदगानी रहे,
जिसने कृष्ण कृष्ण टेरया,फेरी मन की माला,
मनमोहन मुरलिया वाले बंसुरिया वाले सुना दे बंसुरिया,
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