बृजवासी तोहै बुलावे क्यों सांवरिया ना आवे।
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अवधपुरी के राजा हरिश्चंद्र, हो गए ऐसे दानी
मोड़ो घणो आयो रे सांवलिया,
थे मारी लाज गवाई रे,
बोल रही कोयल बरस रहा बादल,झूला झुला दे म्हारा सांवरिया
भरदे मायरो साँवरिया,
नानी बाई लागे,
चन्दन चौक पुरावा,
मंगल कलश सजावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आजा आजा रे सांवरिया नरसी टेर सुनावे रे
ओ आयो आयो फागण आयो, म्हारो साँवरियो मुस्कायो।
तेरी सुन मुरली की तान ओ तान, मैं तो भूल गई सुध सांवरिया।
सांवरियो रंग बरसाये, आयो आयो फागणियो।
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