कब से खड़ी हूं थारे द्वार म्हारा खाटू वाला श्याम,
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ही नहीं ऐसे खाटू में,
दीनो का मेला लगता है,
म्हारे घडी रे घडी रो रिछपाल भगता रो प्रतिपाल, खाटू वालो श्यामजी।
चाहे पूछो धरा गगन से चाहे पूछो अग्नि पवन से,
फागुन की रुत ऐसी आई है खाटू में मस्ती छाई है
म्हारे हिवडे उठी हिलोर भायला खाटू नगरी जावण की,
छाई रै खाटू नगर में बहार,
श्याम मिलन की रूत आई,
जब जब खाटू वाले के भगतो पे विपदा आई,
झूठी दुनिया से हम को बचा ले आजा आजा मेरे खाटू वाले।
खाटू वाले तेरी ज्योत जलती रहे,
सारी दुनिया को रोशन ये करती रहे,
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