हंसा हंस मिलया से हंस होई रे।
Category: विविध भजन
अवधपुरी के राजा हरिश्चंद्र, हो गए ऐसे दानी
आतो सुरगां न सरमावे , इ पर देव रमण न आवे
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
में तो हीरो गमादियो कचरा में ,पांच पचीसों का झगड़ा में।
तर जाओगे राम गुण गाने से, क्या होता है गंगा नहाने से।
राम गुण गायले रे भाई म्हारा,
जब लग सुखी रे शरीर।
अरे काछबो ने काछबी रेता रे जल में
लेता हरी रो नाम ।
भाग भला ज्याँ घर संत पधारे ।
काल बड़ो बलशाली, जाके भोजन है नर-नारी।
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