।। दोहा ।।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोय।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
उठ कर सुबह होटल में जावे ,
चाय बणा दे भाई।
शक्कर कमती पत्ती सलेरी ,
रंग गहरो ले आई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
सुलो सुलो आवाज लगावे ,
चाय बनियक नाहिं।
पलक एक अब रयो नी जावे ,
तड़प तड़प जिव जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय फैली घर घर में ,
कोई टलने नहीं पाई।
पिये चाय प्रेम से बोले ,
जल्दी सुस्ती उड़ जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐ तो चाय सभी के लागु ,
आ छोड़ी नहीं जाई।
बाबू करे चाय री शोभा ,
पियो थे खूब सवाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।
ऐसी चाय मालिक ले राखो ,
जनम मरण मिट जाई।
साधु भाई ! ऐसी चाय चलाई।