राम राम राम राम होरी सत्संग में। ऐसी वैसी बात ना आवे मेरे मन में
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सत्संग की महिमा मुबारक हो।
बाबा जी नैण रसीला, ज्यूँ अमृत का प्याला जी,
संगत करो नी निर्मल
साध री म्हारी हेली,
आवागमन मिट जाये,
बोल रही कोयल बरस रहा बादल,झूला झुला दे म्हारा सांवरिया
बहुत कमाया राजा तेरे घर में।अब जाऊंगी सत्संग में।
कोई पीवे संत सुजान,
नाम रस मीठा रे।।
मझधार में कश्ती है,
और राह अनजानी है,
मैं बहुत दिनों का प्यासा हूँ,
मुझे श्याम सुधा पी लेने दो,
सत्संग की गंगा मंदिर में बही जाय, जामे कोई कोई नहाए।
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