दादी चुनरी मुलायी,तने भाई की ना भाई
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थाने पलकां में छिपालयां,थाने हिवड़े से लगालयां,
कठे सुं ल्याऊँ पांख कठे सुं ल्याऊँ घोड़ी,
घुंघरू बाजे रे,बजरंग नाचे रे
दादी थारो रूप मन भायो,जियो हर्सायो
चुनर तो ओढ म्हारी दादी सिंहासन बैठी जी
चुंदड़ी ओढ़ के राखिजे, मैया मन ना दिजे उतार।
तूं छोटी सी बनडी लागे
एकबार आओ जी दादीजी पावना