हमको भी एक बार घुमाई दे कोई अवध नगरिया।
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जनक दुलारी की होती बिदाई ।
रोये नगरिया हो
कलयुग का देव निराला,
मेरा श्याम है खाटू वाला,
चलो खाटू में,
जगास्यां ग्यारस की रात।।
छिपते छिपाते आ गई रे कान्हा तेरी नगरिया।
सारे देवो मे देव निराला है,
मेरा बाबा दयालु खाटु वाला है,
खाटू के बाबा श्याम जी,मेरी रखोगे लाज
श्याम से मिलकर आयेंगे,चलो खाटू नगरिया