जहां बिराजे शीश का दानी,मेरा लखदातार।चलो रे खाटू के दरबार।
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तू ही कन्हैया तू ही लखदातार है,
कैसो खेल रच्यो मेरे दाता,
जित देखू उत तू ही तू,
तुम्हे वंदना तुम्हे वंदना
हे बुद्धि के दाता सब वेदो के ज्ञाता।
इक हमारे बांके बिहारी दूजे लख दातार,
हमारे दो ही रिश्तेदार,