बैकुंठ में रहकर गिरधारी,मुरली का बजाना भूल गए
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मेरो नंद गांव ससुराल,अब डर काहे को।
बन गए नन्दलाल लिलिहारि, के लीला गुदवा लो प्यारी
तेरी बंसी पे जाऊं बलिहार रसिया,
मैं तो नाचूंगी बीच बाज़ार रसिया।
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया ।
कैसी बजाई बांसुरिया रे मोहन कैसी बजाई बांसुरिया।
मुरली वाले पे दुनिया दीवानी हो गई।
सुन री यशोदा मैया, तेरे नंदलाल ने
कंकरिया से मटकी फोड़ी,
अंजनी रो लालो प्यारो घणों जी, न्यारो घणों जी।महे बालाजी पे करा रे गुमान
सावन आयो आओ नंदलाल,
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