मेरे दिन बंधू भगवान रे,
गरुड़ पर चढ़कर आ जाना।।
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नाथ ये वो ही है रघुनाथ,
जिसने मारा है बाली।।
यह कंचन का हिरण, नाथ हमें लगता प्यारा है,
चन्दन चौक पुरावा,
मंगल कलश सजावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।
में तो पुरबियों पूरब देश रो मारी हेली ।
अगर नाथ देखोगे अवगुण हमारे,
ले लो तुलसी का नाम सवेरे उठ के।
सुबह सुबह जब मेरी आंखे खुलती है, आँखों के सामने बस आरती घुमती है,
छलिया छलिया छलिया ओ कान्हा तुम्हे,भक्तों ने बुलाया है
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