आया बुढ़ापा जब जानी,राम दगा दे गई जवानी
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बड़ी दूर किनारा है,कश्ती भी पुरानी है।
बैठ दो घड़ी करले,प्रभु का भजन
तुझमे ओम मुझमें ओम सब में ओम समाया।
ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां।
राम जी से पूछे जनकपुर के नारी
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो।
निंदिया बाई घर जइयो, जा घर राम भजन नहीं होय