काया तेरी रेल बना दूंगी तब तेरो पिछो छोडूंगी
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काया कमल फूल,सेवा मेरी कौन करेगा
गुरूजी मेरी काया की बन गई रेल। रेल बड़ी अजब निराली है।
तीन बार भोजन भजन एक बार
एक डोली चली,एक अर्थी चली।
चरखा रो भेद बता दे रे,कातन वाली नार
सजन रे झूठ मत बोलो,खुदा के पास जाना है।
कंचन वाली काया हो,सैलानी म्हें तो पावणा।
के गर्व करे इस काया को,या चले न तेरे साथ, भजले श्री श्याम।