सूंड सुंडाला दूंद दूंदाला गणेश भजन
गोविंद जय जय गोपाल जय जय
कर्मो की है ये माया कर्मों के खेल सारे
मुरली जोर की बजाई री नंदलाला
ढल जायेगी उमर धीरे धीरे
मां को समर्पित एक कविता
अति कभी ना करना प्यारे इति तेरी हो जायेगी
एक ना एक दिन तो ये होगा मौत आकर के लोरी सुनाए
जैसी तेरी करनी है वैसा ही तूं फल पाए
पद्मिनी एकादशी अधिकमास शुक्
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