मुख से क्या वचन निकाला, ओ कैकैयी तूने क्या कर डाला।
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भर लाई रे गगरिया राम रस की
सारे जग में डंका बाजे,हो रहयो थारो नाम
चित्रकूट के घाट, घाट पर,शबरी देखे बाट,राम मेरे आ जाओ।
चंदा छुपजा रे बादल में म्हारो, राम गयो बनवास।
श्री राम चंद्र कृपालु भज मन, हरण भवभय दारुणं
आरती श्री रामायण जी की