शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।मीठे चाख चख के।मीठे चाख चख के।🌺शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।
राम लखन शबरी के घर आए। हंस शबरी ने दर्शन पाए। आसन रही है बिछाई कांटे झार झार के। शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।
कुश के आसन शबरी ने दिनही। चरण धोए चरणामृत लिन्ही। मस्तक रही है झुकाए हाथ जोड़ जोड़ के। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।
ऐसे बेर कबहु नहीं खाए। जैसे आज तुम्हारे घर खाए। लक्ष्मण रहे मुस्काए, भ्राता देख देख के।शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।
ह्रदय खुश शबरी ने किनहो। रामचंद्र ने उर धर लीनहो। बैकुंठ गई है सिधार,पालकी बैठ बैठ के।शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।
शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।मीठे चाख चख के।मीठे चाख चख के।🌺शबरी राम को बेर खिला रही,मीठे चाख चख के।