तर्ज, साजन मेरा उस पार है
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है।
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
मुझको तो छप्पन भोग लगाते हो,
माँ को एक रोटी को तरसाते हो,
ऐसे बेटे को तो धिकार है,
करता न अपनी माँ से प्यार है,
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है।
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
मेरा दरबार बड़ा ही सजाते हो,
माँ को एक कमरा नहीं दे पाते हो,
उसका तो जीवन ही बेकार है,
करता न अपनी माँ से प्यार है.
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है।
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
मुझको तो अपने घर में लाते है,
माँ को वृद्ध आशरम में छोड़ आते हो,
ऐसा घर मुझको न स्वीकार है,
करता न अपनी माँ से प्यार है,
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है।
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
दर्शन को तेरे माँ ये तरसी है,
आजा मिलने को तुझपे मरती है,
तेरे आने के ना आसार है,
फिर भी क्यों तेरा इंतज़ार है,
बेशक तू मेरा गुनहगार है,
फिर भी मुझको तो तुजसे प्यार है
उसको मेरी सेवा का अधिकार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,
उसको ही मिलता ये दरबार है,
करता जो अपनी माँ से प्यार है,