तर्ज,ना कजरे की धार
ना ऐसा दरबार,और ना ऐसा सिंगार,और ना है लखदातार बाबा श्याम धनी जैसा।🌹हो बाबा श्याम धनी जैसा।
बाबा मेरे शीश के दानी,खाटू नगरी में बिराजे।घर घर में जोत जले है, दुनियां में डंका बाजे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹इनकी महिमा सब से न्यारी,पल में भरते भंडार।
ना ऐसा दरबार,और ना ऐसा सिंगार,और ना है लखदातार बाबा श्याम धनी जैसा।🌹हो बाबा श्याम धनी जैसा।
जो हार के खाटू आता,सीने से उसके लगाते।दे मोर छड़ी का झाड़ा,सोई तकदीर जगाते।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹नाव थोड़ी सी जो डोले,कर देते भव से पार।
ना ऐसा दरबार,और ना ऐसा सिंगार,और ना है लखदातार बाबा श्याम धनी जैसा।🌹हो बाबा श्याम धनी जैसा।
मेरे श्याम से लगन लगा लो,गुलशन जीवन का खिलेगा।जो कभी मिला ना पहले,तुमको वो सुख भी मिलेगा।🌹🌹🌹कैसे भूलें,बाबा बोलो,हम तेरे ये उपकार।
ना ऐसा दरबार,और ना ऐसा सिंगार,और ना है लखदातार बाबा श्याम धनी जैसा।🌹हो बाबा श्याम धनी जैसा।