तर्ज, घणी दूर से भाग रहो तेरी गाडूली के लार
बजरंगी की पूजा होती,
मंगल और शनिवार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
हाथ में मुगधर लाल लंगोटा,
रूप विशाल,
ये बलकारी मारुति नंदन,
बे-मिसाल,
चैत्र सुदी पूनम को जन्मे,
चैत्र सुदी पूनम को जन्मे,
महिमा है अपरम्पार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
बजरंगी की पूजा होती,
मंगल और शनिवार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
प्रभु राम का जिसने भी,
गुण गाया है,
बजरंगी ने उसको,
गले लगाया है,
ले के शरण में अपनी उसको,
ले के शरण में अपनी उसको,
कर देते उद्धार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
बजरंगी की पूजा होती,
मंगल और शनिवार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
कैसी भी हो विपदा,
दूर भागते है,
इसलिए संकटमोचन,
कहलाते है,
नर तो क्या नारायण भी,
नर तो क्या नारायण भी,
माने इसका उपकार
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
बजरंगी की पूजा होती,
मंगल और शनिवार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
मंगल कारी मंगल,
करते है प्रभु
शनिवार को भक्त चढ़ाते,
इन्हें सिंदूर,
इनके दरपर शीश झुकाते
करते जय जयकार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।
बजरंगी की पूजा होती,
मंगल और शनिवार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार,
मेहन्दीपुर लगा के बैठे,
बाला जी अपना दरबार।।