तर्ज,रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
हो कभी फुर्सत तो मैया आ जाओ
रुखा सूखा भोग लगा जाओ।
मेरे पास ना धन ना दौलत
ना चुनरी तारो वाली
ना छप्पन भोग है मैया
है झोली मेरी खाली विनती ना ठुकराओ
हो कभी फुर्सत तो मैया आ जाओ
रुखा सूखा भोग लगा जाओ।
मेरा खुद ही बिछोनी धरती
तेरी चौकी सजाऊ कैसे
ना दीया है माँ ना बाती
तेरी ज्योत जगाऊ कैसे आस जगवा जाओ
हो कभी फुर्सत तो मैया आ जाओ
रुखा सूखा भोग लगा जाओ।
ध्यानू का शीश लगाई
श्रीधर की लाज बचाई
मेरी बारी में मैया
काहे को देर लगाई मुझे ना भुला जाओ
हो कभी फुर्सत तो मैया आ जाओ
रुखा सूखा भोग लगा जाओ।
तुम भाग्य जगाने वाली
मैं हूँ तकदीर का मारा
तुम्हे चंदन तिलक लगाऊं
माँ तुम ही भव का किनारा दोष का भुला जाओ
हो कभी फुर्सत तो मैया आ जाओ
रुखा सूखा भोग लगा जाओ।