जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।
गाड़ी निकल गई तो, घर से चला मुसाफिर। मायूस हाथ मलता, वापस बैरंग आया।🌹शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया
मन की मशीनरी ने, जब ठीक से चलना सीखा। तब बूढ़े तन के हर एक, पुर्जे में जंग आया।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया
फुर्सत के वक्त में ना, सुमिरन का वक्त निकला उस वक्त वक्त मांगा, जब वक्त तंग आया।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया
आयु ने जब तुम्हारे, हथियार फेंक डालें। यमराज फौज लेकर, करने को जंग आया।शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया।
जीते जी न नहाया, हरिद्वार और काशी।अब हड्डियां को लेकर,नहाने को गंग आया।शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया
जीवन खत्म हुआ तो, जीने का ढंग आया शमां बुझ गई तो, महफिल में रंग आया।