यह विनती है पल पल क्षण क्षण, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में। अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे दुख का आगार बनूं, चाहे सुख का भंडार बनूं। पर सभी परिस्थिति में भगवन, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
जो कुछ भी जग में आता है, प्रारब्ध उसे दे जाता है। मैं लिप्त ना उसमें हो जाऊं, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
यह मानव तन जो पाया है, हरि कृपा दृष्टि की छाया है। मनकी सब चंचलता छूटे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
गति मति से तुम ही विधाता हो, मेरे मन के तुम ज्ञाता हो। इसलिए नाथ कह रहा यही, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।🌹🌹🌹🌹🌹🌹अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
क्या कहूं प्रभु अंतर्यामी, मेरे जीवन धन हे स्वामी। मुझ शक्तिहीन के सत्य सुह्रद, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अपराध न हो इस सेवक से, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
परहित जो जीवन धरत,परहित जो मरी जात। रामायण दृग जल बनत, गीता कर्म रचात।