दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अखियां प्यासी रे। मन मंदिर में ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।
द्वार दया का जब-जब खोलें, पंचम स्वर में गूंगा बोले। अंधा देखें लंगड़ा चलकर, पहुंचे काशी रे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन मंदिर में ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,अखियां प्यासी रे।
मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी न देखी सूरत तेरी। युग बीते ना आई मिलन की, पूरणमासी रे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन मंदिर में ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अखियां प्यासी रे।
पानी पीकर प्यास बुझाऊं, नैनन को कैसे समझाऊं। आंख मीचोली छोड़ दे अब तो, घट घट वासी रे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन मंदिर में ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,अखियां प्यासी रे।
बल निर्बल के धन निर्धन के, तुम रखवारे भक्त जनन के। तुमरे दया से सब सुख पाऊं, मीटे उदासी रे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन मंदिर में ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,अखियां प्यासी रे।