कबुतर खेत मत भेले रे,
Category: rajasthani geet
डाकिया रे म्हारो कागद लिख दे,
सुन बागा की मोरनी थारी, घणी सुरंगी चाल
रंग रुडो रे राठौड़ा थारी महफिल रो,रंग रुडो रे
म्हाने तो भावे रे बादामां री कतली
देश में चालो जी ढोला मन भटके।
सुणज्यो सुणज्यो ओ सासूजी, दिन दिन ऊंचो आवे है।
सामली हवेली माथे,कागला घणा
धरती धोरा री धरती धोरा री
देवर सु बोली भाभी म्हारे आधे अंग रा साथी,
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