तर्ज:- अब न छिपाऊँगा सबको बताऊंगा
शबरी बिचारी है, प्रेम की मारी है,
स्वागत में रघुबर के , सुद बुद्ध बिसारी है,
लक्ष्मण सीताराम मेरे घर में पधारे ।।
कबसे बैठी थी मैं आस लगाये, दो नैनन के दीप जलाये,
रघुनंदन ने दर्श दिखाये, जन्म जन्म के सब सुख पाये,
मेरी कुटिया के बड़े भाग सुहाने हैं, आज प्रभु को मीठे भोग लगाने हैं,
थोड़ा करो विश्राम,मेरे घर माही।
कबसे हरि से टेर लगाई, राह तकत अखियां पथराई,
आज हरि को मेरी सुध आयी, अंगना बीच खड़े रघुराई
आसान लाऊंगी घर मे बिठाऊंगी, आज हृदय की पीड़ा प्रभु को दिखाउंगी,
सुबह से हो गयी शाम मेरे घर में।
चख चख मीठे बेर खिलाये, खट्टे खट्टे दूर फिकाये,
लक्ष्मण को झूठे नहीं भाये, सीता को कुछ समझ न आये,
शबरी के जीवन में खुशियों का डेरा है, कल तक अंधेरा था अब तो सबेरा है,
कैसे रखूं दिल थाम मेरे घर में।
बड़े भाग यह नर तन पाये, जीवन को नहीं व्यर्थ गवायें
राम भजन से मुक्ति पाये, हनुमान जी से भक्ति पाये,
दो दिन ठिकाना है एक दिन तो जाना है, दास ने माना है गुणगान गाना।
बिगड़े बनेंगे सब काम मेरे घर में।
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