खुशी के पल,कहाँ ढूंढूं
बेनिशान सा,
वक़्त भी यहाँ है
Category: विविध भजन
कलयुग आयो प्रभु जी ने कई लायो भेष
मैं सूती रेह गई जी गुरु जी मैं करमा दी मारी
मैं सत्संग बैठी जी प्रभु जी नींद लगी बड़ी भारी।
हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,
निन्दियाँ करे रे ज्यां ने करवा दो,
फाट्या दूध के तो जावन्न लागेई कोन्या
कर्मों का लिखा कहीं जाता नहीं। राम तेरी नगरी में घाटा नहीं
आधी रात सिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का।
साथ छूटेगा कैसें मेरा आपका,
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