किसे पूछूँ, है ऐसा क्यूँ
बेज़ुबान सा ये जहाँ है
खुशी के पल,कहाँ ढूंढूं
बेनिशान सा,
वक़्त भी यहाँ है।
जाने कितने लबों
पे गीले हैं,ज़िंदगी से काई फ़ासले हैं
पासीजते हैं सपने क्यूँ
आँखों में,लकीर जब छ्छूते इन हाथों से
यून बेवजह।
जो भेजी थी दुआ,वो जाके आसमान
से यू टकरा गयी,के आ गयी है लौट
के सदा जो भेजी थी दुआ,
वो जाके आसमान
से यू टकरा गयी
के आ गयी है लौट
के सदा।
साँसों ने कहाँ रुख़ मोड़ लिया
कोई राह नज़र में ना आए
धड़कन ने कहाँ दिल छ्चोड़ दिया
कहाँ छ्चोड़े इन जिस्मों ने साए।
यही बार-बार सोचता हूँ
तन्हा मैं यहाँ,मेरे साथ-साथ चल रहा
है यादों का धुआँ।