साई के दरबार में जा भाई, लम्बा खड़ा खजूर । चढ़े तो मेवा चाखले रे,पड़े तो चकनाचूर ।
फेर उठण कद पावैगा।
जैसे शीशी कांच की रे भाई, वैसी नर की देह , जतन करंता जायसी रे, हर भज लावा लेख। फेर नोसर कद आवेगा ।
चन्दा गुडी उड़ावता रे भाई, लम्बी देता डोर। झोलों लाग्यो प्रेम को रे, कित गुडिया कित डोर।
फेर कुण पतंग उड़ावला ।
ऐसी कथना कुण कथी रे भाई, जैसी कथी कबीर । ना जलिया ना गडिया रे, अमर भयो शरीर । पैप का फूल बरसावेगा ।