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विविध भजन

Sai ke Darwar me ja bhayi lamba khada khajur,साई के दरबार में जा भाई लम्बा खड़ा खजूर

साई के दरबार में जा भाई, लम्बा खड़ा खजूर

साई के दरबार में जा भाई, लम्बा खड़ा खजूर । चढ़े तो मेवा चाखले रे,पड़े तो चकनाचूर ।
फेर उठण कद पावैगा।



जैसे शीशी कांच की रे भाई, वैसी नर की देह , जतन करंता जायसी रे, हर भज लावा लेख। फेर नोसर कद आवेगा ।



चन्दा गुडी उड़ावता रे भाई, लम्बी देता डोर। झोलों लाग्यो प्रेम को रे, कित गुडिया कित डोर।
फेर कुण पतंग उड़ावला ।



ऐसी कथना कुण कथी रे भाई, जैसी कथी कबीर । ना जलिया ना गडिया रे, अमर भयो शरीर । पैप का फूल बरसावेगा ।

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