झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी।झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी।
तेरे जेसो ओर नही है जगत बीच म दानी। म्हारे मन पर के बीत र थे जाणो अंतरयामी। घर से चाली रे म धर चरणा को ध्यान भिखारन तेर द्वार खड़ी। झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी।
सास ननद म्हारी दोर- जिठानी बांझ कहे बतलावे। लागे तीर कलेजै माहीं बोल सया नही जावै ।ताना मारे रे जीवण न दे झ्यान भिखारन तेर द्वार खड़ी। झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी ।
खड़ी द्वार पर अर्ज करे रे थारे चरणा की दासी । थारे घर म कमी नही है सुणले खाटू वासी ।
बाबा दे दे रे दुखिया न सन्तान,भिखारन तेर द्वार खड़ी।झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी।
खड़ा द्वार पर अज कर र थार चरणा का दासी । थारे घर म कमी नही है सुणले खाटू वासी । बाबा दे दे रे दुखिया न सन्तान,भिखारन तेर द्वार खड़ी।झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम
भिखारन तेर द्वार खड़ी।
“मोहन” मनस्या भरे भगत की श्याम धणी दातार । सच्चे दिल से जो कोई ध्यावे हो ज्या बेड़ा पार। भगत नै देदे रे मन चायो वरदान,भिखारन तेर द्वार खड़ी।झोली भरदे रे खाटू का बाबा श्याम भिखारन तेर द्वार खड़ी।