आवेंगे कभी क्या श्याम सखी,
मन जाने कैसा होता है।
हर रात अधिक सूनी सूनी,
दिन दिन दिन छोटा होता है।
मुण्टिक चाणूर कुवलियादिक।
कुब्जा कामिनियॉ मथुरा में,है वंश कुठार नृषंस कंस,
मन में ना धीरज होता है।
ले गये श्याम सुन्दर को जो,
मथुरा हम सब से बिछुड़ा कर।
अक्रूर कहे जो ऐसे को,
तो क्रूर कहो क्या होता है।
निर्मोही श्याम स्वयं निकले,
क्या दोष किसी को देना है।
पल मे बिसराया, छोड गये,
ऐसा क्या नाता होता है ।
औषध से रोग मिटा करते,
क्या होता नाम बताने से।
जब श्याम नही आये ऊधो,
संदेषा से क्या होता है ।
क्या योग सिखाओगे अब तुम,
जब भाग्य वियोग लिखा विधि ने।
धनष्याम गये जी जायेगा,
‘शम्भु‘ यह अनुभव होता है ।