राम नाम का सुमिरन करले,फेरे प्रेम की माला।
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।
हिरणाकुश पेलाद भक्त का,
जानी दुश्मन बन के रे ।
जल्लादो को हुक्म दे दिया,
फांसी दो दुश्मन को रे ।
बांद पोट पर्वत से पटकिया,
चोट लगी ना तन के रे ।
गोदी में ले बैठी होलिका,
बैठी बिच अगन में रे ।
खम्भ फाड् पेलाद बचाया,
मर गया मारण वाला रे ।
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।
खाश पिता की गोदी में रे,
बेठ्या दुर अवतारी रे ।
हाथ पकड़ कर मौसी ने पटक्या,
मुख पर थप्पड़ मारी रे ।
उपग्या ज्ञान भजन में लाग्या,
आगे की वो सुध धारी रे ।
राम नाम का जाप बताया,
नारद जी तप धारी रे ।
लाखो वर्ष तपस्या करके,
किया जगत उजियाला रे ।
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।
भरी सभा में दुष्ट दुस्साशन,
चाल्या खूब अकड़ के रे ।
बुरे हाथ से ध्रुपद सुधा को,
लाया केश पकड़ के रे ।
नग़न करण का मत्ता किया वो,
पकड़ चीर बेधके रे ।
खेचत खेचत अंत नहीं आया,
मर गया पेट पकड़ के रे ।
कुरुक्षत्र की हुइ लड़ाई,
भरिया खून का नाला रे ।
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।
काम क्रोध माया में बसे जद,
जग में ना आराम मिले ।
दुविधा में फस जावे जिव जब,
नहीं माया नहीं राम मिले ।
दे विश्वास दगा कर डाले,
कभी नहीं घनश्याम मिले ।
कपट भंद छल धोके से नहीं,
स्वर्गपूरी का वास मिले ।
हरी नारायण शर्मा कहता,
भगवान भक्त का रखवाला ।
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।
राम नाम का सुमिरन करले,
फेरे प्रेम की माला
उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रुखाला रे ।