Categories
विविध भजन

Pathar ki murat ko bhagwan samajhte hai,पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं,

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

गीले में सोई है सूखे में सुलाया है
बाहों के झूले में ललन को झुलाया है
ऐसी ही ममता को अपमान समझते हैं।पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

राखी के लिए बहना भाई को मांगती है
राखी बांधते में बहन दुआ मांगती है
ऐसे भी बंधन को अपमान समझते हैं।पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

बाज़ार में बैठी है लोगों ने बिठाया है
अपने तन के कपड़े उसको उधाए हैं
ऐसे भी रिश्ते को अपमान समझते हैं।पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं।

Leave a comment