मोहन बरसाने में, चूड़ी बेचने आईयो।मेरे खातिर ओ मेरे कान्हा, मनिहारा बन जाइयो।मोहन बरसाने में, चूड़ी बेचने आईयो।
बैठी अटारी बाट निहारूं, नैनन वहां बुहारूं।खिड़की खुली खुले हैं दरवाजे, गिन गिन घड़ी गुजारूं।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺तेरे बिरह में हुई बावली,मत ना देर लगाइयो।मोहन बरसाने में, चूड़ी बेचने आईयो।
गोरी से में पड़ गई काली,तेरी याद सतावे। गिन गिन तारे रात बिताऊं,बैरन नींद ना आवे।🌺🌺 ओ रे कन्हैया कब आओगे,इतना तो बतलाइयो।मोहन बरसाने में, चूड़ी बेचने आईयो।
तेरे बिन ना पनघट जाऊं,ना फागण में जाऊं।झूल रही हूं याद का झूला,आंगन नीर बहाऊँ।तूने बड़ा तड़पाया छलिया,और ना अब तड़पायियो।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺मोहन बरसाने में, चूड़ी बेचने आईयो।