तर्ज, ओ राधा म्हाने सांची बता दे
सांवरिया म्हाने क्यों नहीं बनायो रे,थारे वृंदावन को मोर,रंगीलो गिरधारी।
ब्रज में रहूं तो व्रज फल खाती।कान्हा कान्हा रोज में गाती।२।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹थारे नाम पे में इतराती, उडती पंख मरोड।सांवरिया म्हाने क्यों नहीं बनायो रे,थारे वृंदावन को मोर,रंगीलो गिरधारी।
मात यशोदा म्हाने,चुगो रे चुगाती,नंद जी री पोलयां में सो जाती।२।🌹🌹🌹🌹🌹🌹घुमड़ घुमड़ जब आती बादली,बरसे घटा घनघोर।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹सांवरिया म्हाने क्यों नहीं बनायो रे,थारे वृंदावन को मोर,रंगीलो गिरधारी।
पांख गिरयां म्हारी मोहन उठातो,टांक मुकुट में रोज सजातो।२।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹दादुर मोर पपिहा बोली,सुनती कोयल किल्लोल।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹सांवरिया म्हाने क्यों नहीं बनायो रे,थारे वृंदावन को मोर,रंगीलो गिरधारी।
मीरा का प्रभु गिरधर नागर,हंस हंस करे ठिठौरी।२।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बोले मोरनी तेरी पांख को, जनम जनम में चोर।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹सांवरिया म्हाने क्यों नहीं बनायो रे,थारे वृंदावन को मोर,रंगीलो गिरधारी।