दोहा : गुरु पद पंकज ध्यान धर, सुमीर सच्चिदानंद।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹श्याम चौरासी भजत हूं,रच चौपाई छंद।
मेहर करो जन के सुखरासी, सांवल सा: खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹प्रथम शीश चरणों में नवाऊँ।कृपा दृष्टि रावरी चाहूं।
माफ सभी अपराध कराऊं,आदि कथा सुछंद रच गाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹भक्त सुजन सुनकर हर्षासी।सांवल सा:खाटू के वासी।
कुरू पांडव में विरोध छाया,समर महाभारत रचवाया।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बली एक बर्बरीक आया,तीन सुबाण साथ में लाया।
यह लखी हरी को आई हांसी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मधुर वचन तन कृष्ण सुनाये,समर भूमि केही कारण आये।
तीन बाण धनु कंध सुहाये,अजब अनोखा रूप बनाये। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹वाण अपार वीर सब ल्यासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
बर्बरीक इतने दल माही,तीन बाण की गिनती नाही।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹योद्धा एक से एक निराले,वीर बहादुर अति मतवाले।
समर सभी मिल कठीन मचासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बर्बरीक मम कहना मानो,समर भूमि तुम खेल न जानो।
द्रोण गुरु कृप आदि जुझारा,जिन से पारथ का मन हारा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹क्या तूं पेश इन्हों से पासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
बर्बरीक हरी से यूं कहता,समर देखना में हूं चाहता।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹कौन बली रणशूर निहारूं,वीर बहादुर कौर जुझारूं।
तीन लोक त्रिवाण से मारूं,हंसता रहूं कभी न हारूं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹सत्य कहूं हरि झूठ न जानों,दोनों दल एक तरफ हो मानो।
एक वाण एक दोऊ खपासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बर्बरीक से हरि फरमावे,तेरी बात समझ नही आवे।
प्राण बचाओ तुम घर जाओ, क्यों नादानपना दिखलाओ। 🌹🌹🌹🌹🌹तेरी जान मुफ्त मैं जासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
गर विश्वास ना तुम्हें मुरारी, तो कर लीजिए जांच हमारी। यह सुन कृष्ण बहुत हरसाए। बर्बरीक से वचन सुनाएं।
मैं अब लेऊं परीक्षा खासी, सांवल सा:खाटू के वासी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹पात विटप के सभी निहारो, बेध एक शर से सब डारो।
कह इतना एक पात मुरारी,दबा लिया पग तले करारी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अजब रची माया अविनाशी,सांवल सा:खाटू के वासी।
बर्बरीक धनु बाण चढ़ाया, जानी जाए ना हरि की माया।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹विटप निहार बली मुसकाया, अजित अमर अहिलावती जाया।
बलि सुमिर शिव बाण चलासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बाण बलि ने अजब चलाया,पत्ते बेध विटप के आया।
गिरा कृष्ण के चरणों माही, बिंधा पात हरि चरण हटाई।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹इनसे कौन फतेह किमी पासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
कृष्ण बली से कहे बताओ, किस दल की तुम जीत कराओ। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बलि हार का दल बतलाया, यह सुन कृष्ण सन्नाका खाया।
विजय किस तरह पाथ पासी, सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 छल करना तब कृष्ण विचारा, बलि से बोले नंदकुमारा।
न जाने क्या ज्ञान तुम्हारा, कहना मानो बली हमारा। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हो निज तरफ नाम पा जासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
कहे बर्बरीक कृष्ण हमारा, टूट ना सकता प्रण है करारा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 मांगे दान उसे मैं देता, हारा देख सहारा देता।
सत्य कहूं न झूठ जरासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बेशक वीर बहादुर तुम हो, जंचते दानी हमें न तुम हो।
कहे बर्बरीक हरि बतलाओ,तुमको चाहिए क्या फरमाओ। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹जो मांगे सो हमसे पासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
बलि अगर तुम सच्चे दानी, तो मैं तुमसे कहूं बखानी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹समर भूमि बली देने खातिर, शीश चाहिए एक बहादुर।
शीश दान दे नाम कमासी,सांवल सा:खाटू के वासी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हम तुम अर्जुन तीनों माही, शीश दान दे को बलिदाई।
जिसको आप योग्य बतलाए, वही शीश बलिदान चढ़ाएं। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹आवागमन मीटे चौरासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
अर्जुन नाम समर में पावे, तुम बिन सारथी कौन कहावे। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मम सिर दान दिहों भगवाना, भारत देखन मन ललचाना।
शीश शिखर गिरि पर धरवासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 शीश बर्बरीक दान दिया है, हरि ने गिरी पर धरा दिया है।
समर अठारह रोज हुवा है, कुरु दल सारा नाश हुवा है। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹विजय पताका पांडू फहरासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
भीम नकुल सहदेवा पारथ,करते निज तारीफ अकारथ। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹यों सोचे मन में यदुराया,इनके दिल अभिमान है छाया।
हरि भक्तों का दुःख मिटासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹पारथ भीम आदि बलधारी,से यों बोले गिरिवर धारी।
किसने विजय समर में पाई,पूछो सिर बर्बरीक से भाई।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सत्य बात सिर सभी बतासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
हरि सबको संग ले गिरीवर पर,सिर बैठा था मगन शिखर पर। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹जा पहुंचे झटपट नंदलाला, पुनि पूछा सिर से सब हाला।
सिर दानी है खुद अविनाशी, सांवल सा:खाटू के वासी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हरि यूं कहें सही फरमाओ, समर जीत है कौन बताओ।
बली कहे में सही बताऊं, नहीं पितु चाचा बलि न ताऊ।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 भगवत ने पाई शाबाशी,सांवल सा:खाटू के वासी।
चक्र सुदर्शन है बलदायी, काट रहा था दल जिमी काई। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹रूप द्रौपदी काली का घर, हो विकराल ले कर मैं खप्पर।
भर भर रुधिर पिए थी प्यासी सांवल सा:खाटू के वासी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹मैंने जो कुछ समर निहारा, सत्य सुनाया हाल है सारा।
सत्य वचन सुन कर यदुराई, वर दीन्हा सिर को हर्षायी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹श्याम रूप मम धार पूजासी,सांवल सा:खाटू के वासी।
कली मैं तुमको श्याम कन्हाई, पूजेंगे सब लोग लुगाई।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 मन क्रम वचन से जो ध्याएंगे, मन इच्छा सब फल पाएंगे।
श्याम शरण सद्गति पा जासी,सांवल सा:खाटू के वासी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 निर्धन को धनवान बनाना, पत्नी गोद में सुमन खिलाना।
सेवक आए शरण तिहारी, श्रीपती यदुपति कुंज बिहारी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹सब सुखदायक आनंद राशि, सांवल सा:खाटू के वासी।
श्याम चौरासी है रची,भक्त जनन के हेत।सेवक निशिवासर पढ़े,सकल सुमंगल देत।
लख चौरासी छुटिए,श्याम चौरासी गाय। अघत चार फल पाय कर,आवागमन मिटाय।
सेवक मन उपनाम है,कह सब सेवक जन।सात्विक भक्त जग में जीये,उनको करूं प्रणाम।
शुक्ल पक्ष ग्रह ग्रह शशि, पित पक्ष शुभ जान।चंद्रमा एकादशी, कियो पूर्ण गुणगान।
जै श्याम,जै श्याम,जै जै श्याम