तर्ज,तुम्ही मेरे मंदिर
तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। यह मैं जानता हूं या तूं जानता है।
जमाने की चलगत, बड़ी बेतुकी है। जिधर देखता हूं में,उधर सब दुखी है। 🦚🦚🦚🦚घीर के दुखों में भी, मैं क्यों सुखी हूं। यह मैं जानता हूं या तूं जानता है।🦚🦚🦚🦚🦚तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। ये मैं जानता हूं या तूं जानता है।
चेहरे पे चेहरे सभी है लगाए। चोट गैरों से ज्यादा, अपनों से खाए। 🦚🦚🦚🦚🦚🦚मुझे किससे कैसा शिकवा गिला है। यह मैं जानता हूं या तू जानता है।🦚🦚🦚🦚🦚तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। ये मैं जानता हूं या तूं जानता है।
अकेला समझ कर, सताया जहां ने। कदम दर कदम मुझको, रुलाया जहां ने।🦚🦚🦚🦚 कैसे हंसी का, कमल यह खिला है। यह मैं जानता हूं या तू जानता है।🦚🦚🦚🦚🦚तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। ये मैं जानता हूं या तूं जानता है।
डूबेगी नैया, कहती थी दुनिया। पतन की उम्मीदों में, रहती थी दुनिया। 🦚🦚🦚🦚 नईया को कैसे किनारा मिला है, यह मैं जानता हूं या तू जानता है।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। ये मैं जानता हूं या तूं जानता है।
अंधेरा घना था, न दिखती थी राहें। तूने संभाला मुझको, फैलाकर बाहें।🦚🦚🦚🦚 नैनो को संजू कैसे, उजाला मिला है। ये मैं जानता हूं या तू जानता है।🦚🦚🦚🦚🦚तेरे दर पर आकर मुझे क्या मिला है। यह मैं जानता हूं या तूं जानता है।