हेली म्हारी बाहर भटके काँहि ,
Category: निर्गुण भजन nirgun Bhajan
जग में साँचा रे राम सजाई,
अरे हंसला रे, चुगले चुगले,
मोतीड़ा रो चून,
पंछिड़ा भाई कई बैठो तरसायो रे,
साधो भाई मुर्दा देवे हेला,
एक दिन खाली करनी पड़सी रे, काया कोटडी भाड़ा की ।
हिये काया में बर्तन माटी रो
म्हारी सुरता घुंघट के पट खोल दिखाऊँ तने हरी नगरी।
काहे रोये यहां तेरो कोई नहीं
संगत करो नी निर्मल संत री म्हारी हेली,
You must be logged in to post a comment.