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विविध भजन

Kabira by Hansraj raghuwanshi,माटी का मैं हूं बंदा ना कोई सोना ना कोई हीरा ये कबीरा

माटी का मैं हूं बंदा ,ना कोई सोना ना कोई हीरा

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए। कुछ ऐसी करनी कर चले, हम हंसे जग रोए।

माटी का मैं हूं बंदा ,ना कोई सोना ना कोई हीरा।ये कबीरा। झूठी यह दुनिया सारी, झूठा यह शरीरा ,है कबीरा। हर कोई आखे सब नू बुरा।हर कोई आखे सब नू बुरा। खुद के अंदर ना देखें।माटी का मैं हूं बंदा ,ना कोई सोना ना कोई हीरा।ये कबीरा।

रोज लड़े तू माया के खातिर, करता क्यों गलत काम। अंत समय पछताएगा फिर तु, याद आएंगे राम। धन दौलत और माल खजाना, आएंगे ना तेरे काम। तेरे अपने ही जलाएंगे तुझको, और छोड़ आएंगे शमशान।माटी का मैं हूं बंदा ,ना कोई सोना ना कोई हीरा।ये कबीरा।

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