तर्ज – जीता था जिसके लिए
दुनिया के आगे प्रभु,चुपचाप मैं रहता हूँ,
मेरा तू ही तो हमदर्द है,जिसे हर दर्द कहता हूँ।
दुनिया के आगे प्रभु।
दुनिया की आदत,करती बगावत,
जब दिन बुरे घिरते।जब दिन बुरे घिरते।
नजर चुराते दूरी बढ़ाते,सब यार मुंह फेरते।
सब यार मुंह फेरते।ना समझे कोई भी,
किसी की परेशानियां।मेरा तू हीं तो हम दर्द है,
जिसे हर दर्द कहता हूँ।दुनिया के आगे प्रभु।
जग है छलावा, तेरे अलावा, किसी पे भरोसा नहीं। किसी पे भरोसा नहीं। मुझे दाना पानी, सिवा तेरे दानी, किसी ने परोसा नहीं। किसी ने परोसा नहीं।भला कैसे भूलूँ, मैं तेरी मेहरबानियां। मेरा तू हीं तो हम दर्द है, जिसे हर दर्द कहता हूँ। दुनिया के आगे प्रभु।
आया नजर ना, कोई भी अपना, जब मुझको दरकार थी। जब मुझको दरकार थी। तब मेरे पथ का, जीवन के रथ का, तू ही बना सारथी। तू ही बना सारथी। ‘माधव’ ने की हर कदम पर निगेबानिया। मेरा तू हीं तो हम दर्द है, जिसे हर दर्द कहता हूँ, दुनिया के आगे प्रभु।
दुनिया के आगे प्रभु, चुपचाप मैं रहता हूँ।मेरा तू ही तो हमदर्द है, जिसे हर दर्द कहता हूँ। दुनिया के आगे प्रभु ।