घट राखो अटल सुरती ने, दरसन कर निज भगवान का ॥
सतगुरु धोरे गया संतसंग में, गुरांजी भे दिया हरि रंग में ।शबद बाण मर्या मेरे तन में, सैल लग्या ज्यूँ स्यार का ॥मेरा मन चेत्या भक्ति में ।
जबसे शबद सुण्या सतगरु का, खुल गया खिड़क मेरे काया मंदिर का ।
मात पिता दरस्या नहीं घरका, दूत लेजा जमराज का तेरा कोई न संगी जगती में ॥
नैन नासिका ध्यान संजोले, रमता राम निजर भरजोले।बिन बतलाया तेरे घट में बोले, बेरो ले भीतर बाहर का ॥अब क्यूँ भटके भूली में ॥
अमृतनाथजी रम गया सुन्न में, मुझको दीदार दिखा दिया छत में ।
मद्यो मगन हो जा भजन में, रुप देख निराकार का ।
अब क्या सांसा मुक्ति में ॥