चढ़ चालो गुरांजी के देश
बठ ही तेरो साहेबो बसे
साहेबो बसे रे तेरो साहेबो बसे।
फूल कमल का मंजन करले आसन पद में धरो
भाई साधो,
उल्टा बाण शिखर घर मारों जमड़ा स राड़ लड़ो
सुहागन सुरता मान कयों।चढ़ चालो गुरांजी के देश
बठ ही तेरो साहेबो बसे
साहेबो बसे रे तेरो साहेबो बसे।
अविनाशी घर वृक्ष लगाया नहीं धूप नहीं छाया भाई साधो।
जड़ नादान पता नहीं उनके चारुं दिशा में र छायो सुहागण सुरता मान कयों।चढ़ चालो गुरांजी के देश
बठ ही तेरो साहेबो बसे
साहेबो बसे रे तेरो साहेबो बसे।
रिमझिम रिमझिम मेवला से बरसे ,हिवड़ो हबख रयो भाई साधो
बिन बादल बिना चिमके बिजली ,अनहद गरज रयो सुहागण सुरतां मान कयों।चढ़ चालो गुरांजी के देश
बठ ही तेरो साहेबो बसे
साहेबो बसे रे तेरो साहेबो बसे।
सतगुरु बाण समझ कर मारया ,नैणा से नीर भयो भाई साधो
“रेवादास” शरण सतगुरु की ,अधर सिंघाषण पियो पायो ,
सुहागण सुरतां मान कयों।चढ़ चालो गुरांजी के देश
बठ ही तेरो साहेबो बसे
साहेबो बसे रे तेरो साहेबो बसे।