उजली बत्तीसी लाम्बा केश
सांवरिया प्यारा,मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश।
सावन आवण कह गयो रे कर गयो कोल अनेक,
गिनता गिनता घस गई,म्हारे आंगलिया री रेख।सांवरिया प्यारा,मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश।
साँवरे नै ढुँढण में गई रे कर जोगण का भेष,
ढूँढत ढूँढत जुग भया रे,मेरा धोळा हो गया केश।सांवरिया प्यारा,मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश।
कागज ना स्याही नही रे ना कोई कलम दवात
पंछी को परवेश नही रे किस विधि लिखूं सन्देश।सांवरिया प्यारा,मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश।
मौर मुकुट कटी काछणी रे घूंघर वाला केश
मीरां न गिरधर मिल्यो रे धर नटवर को भेष।सांवरिया प्यारा,मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश।