चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,
रात दिवस ला के माहि रे,
गगन मंडल में चमके रे बिजली,
ज्ञान घटा जद आई रे
मधुर मधुर वाणी बोले रे! पपईया
बैरन नींद उड़ाई ।चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,रात दिवस ला के माहि रे,
चतरा चौक में घाल्यो हिंडोलों
हिंडे तीजड्या सवाई ,।
पांच पच्चीस तीस मिल सखियां ,
सदा आनन्द बरसाई।चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,रात दिवस ला के माहि रे,
सूरता रो हार म्हाने,
गुरासा पहनायो ,
मस्त रहू रे दिन राती रे
प्रेम पुष्प म्हारा कब ह् ना मुरझे ,
सदा ही रवे हरियाली ।चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,रात दिवस ला के माहि रे,
ओम सोम का तो घाल्या हिंडोला,
हिंडो चढ्यो नभ माँही रे,
में डरती म्हारे पिवजी ने पकड्या,
जे छोड़ू तो गिर ज्याई रे।चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,
रात दिवस ला के माहि रे,
देवनाथ जोगी गुरा तो मिल ग्या,
मैं वासे गम पाई रे ।
म्हाने कवे रे आनंद म ही, रहना,
सावन सदा हरियाली रे।चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में ,रात दिवस ला के माहि रे,