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Aur dukhda sab bhul gayi mhari heli,और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली राम रत् धन लाग

और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग।

और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।



गुंगे ने सपनो भयो म्हारी हेली, मन ही मन मुस्काय। कौन सुने किसने कहूँ म्हारी हेली, अपने दिल की बात।।और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।



ओर सखी पीली भई म्हारी हेली, तू विरहन कैसे लाल। अविनाशी की सेज पर म्हारी हेली, पोडत हो गई निहाल।।और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।



अविनाशी की सेज का म्हारी हेली, कहो कितना अनुमान। कहन सुनन की गम नही म्हारी हेली, परस्या जिका ने परमाण।।और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।



पतिव्रता पीहर बसै म्हारी हेली, अंतर पीया को ध्यान। केहवतङी सरमा मरूं म्हारी हेली, ऐसो है आत्म राम।।और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।



मिली है सुहागण पीव से म्हारी हेली,
तन मन करदियो पेश।
कहै कबीरो धर्मीदास ने म्हारी हेली,
पहुंची है दिवाना देश।।और दुख्ङा सब भूल गई म्हारी हेली, राम रत् धन लाग। पुरूष विदैही म्हारे आंगने म्हारी हेली, खेल रहयो है दिन रात।।

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